कुछ बदला बदला सा लगता है

कुछ बदला बदला सा लगता है, रास्ते वही है

कंक्रीट के चादर ओढ़े, अपवाहिकाओं के संगम से 

ले के जाती हमारे गाँव की ओर, कुछ वीराना सा लगता है

वो गाँव के नए पीपल के पेड़, वो सुना चौपाल 

वो गलियारों में पसरा सन्नाटा, घर के दरवाज़े पे निहारती वो बूढ़ी अम्मा

अपने ही गाँव में कुछ अनजाना सा लगता है, कुछ बदला बदला सा लगता है 

 

कुछ नए पुराने चेहरे, वो चेहरे पहचानने की कसमकस

वो ढलते बुझते चेहरे, वो गिरती बनती दीवारे, बटता हुआ परिवार

कुछ बेचैन सी कर देती है, समय का चक्र और विकास का पहिया

अपने ही घर में पराया सा कर देता है, कुछ बदला बदला सा लगता है

 

बाग बगीचे, खेत खलिहान, वो पुआल के झूले, वो पेड़ो पे लटकना

वो बगिया में आम चुराना, गिरते पड़ते भागना, साइकिल से रेस लगाना

दोस्तों से झगड़ना और फिर उन्हें मनाना, अभी भी कुछ याद दिलाती है

वो माँ का लाढ, पिता का प्यार, बहन का दुलार, भाई की फटकार 

अब तो सब बेगाना सा लगता है, कुछ बदला बदला सा लगता है 

 

मिट्टी के घरोन्दा बनाते बनाते हम अपने ही घर को छोड़ आते है

ठिकानों के लिए भटकते है और शहर के चार दीवारी में सिमट कर मकानों के ख़्वाब बुनते है 

उम्र निकल जाती है कमरे को पक्का मकान बनाते बनाते और फिर तरक्की की झूठी दिलासा देते है

शहर की भीड़ और प्रतिस्पर्धा की होड़ अपने को ही भुला देती है 

परायों से दोस्ती और अपनों को ही पराया कर देती है कुछ अनजाना सा कर देती है  

 

अजीब सी उलझन है ये जिंदगी, आने वाले समय को सवारूँ या बीते हुए पल में खो जाऊँ 

ममता के आँचल में चलूँ या विकास के भीड़ में शामिल हो जाऊँ 

जिसने हमें बनाया है उसे बनाऊं या अपने लिए सौदा तैयार करू

एक तरफ काल की गहराइयों को देखता हु तो दूसरी तरफ आसमान की उचाइयां

किसे कहूँ अपना पराया, सब तो वो काल है जो आज को अपना

और कल को पराया कर देता है, कुछ बदला बदला सा कर देता है

 

घर से कोसो दूर आज भी उस गांव के मिट्टी की खुसबू में खो जाने को दिल करता है 

वो लहलहाते खेतो, पगडंडियों, बाग बगीचे  में भग जाने को दिल करता है 

वो प्रकृति की गोद और नदियों की कल कल करती धारा में बह जाने को दिल करता है  

उस गाँव के अपनापन और अपनों के स्नेह में खो जाने का दिल करता है

इस शहर के भीड़ से कही दूर जाने को दिल करता है, कुछ बदला बदला सा लगता है  

A. M. Gautam

9 thoughts on “कुछ बदला बदला सा लगता है

  • January 25, 2021 at 1:29 pm
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    After reading this poem really i miss my childhood.

    Reply
  • January 27, 2021 at 3:02 pm
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    Heart touching, everything in this poem recites the truth!!

    Reply
  • January 27, 2021 at 3:03 pm
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    Great! it reminds me of childhood

    Reply
  • January 27, 2021 at 3:05 pm
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    Heart touching!!!! nice

    Reply
  • August 28, 2021 at 12:28 pm
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